भारत के न्यायिक इतिहास में सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए कई फैसले अद्वितीय और ऐतिहासिक रहे हैं, जो न केवल संविधान और कानून की व्याख्या करते हैं, बल्कि समाज को एक नई दिशा भी प्रदान करते हैं। सुप्रीम कोर्ट के ये फैसले भारतीय समाज के विभिन्न पहलुओं पर गहरा प्रभाव डालते हैं और लोकतंत्र के मजबूत स्तंभ के रूप में कार्य करते हैं। इस लेख में, हम कुछ ऐसे प्रमुख फैसलों का उल्लेख करेंगे जो भारतीय कानून और समाज के लिए मील का पत्थर साबित हुए हैं।
1. केशवानंद भारती बनाम केरल राज्य (1973)
पृष्ठभूमि
यह मामला भारतीय संविधान के मूल ढांचे (बेसिक स्ट्रक्चर) के सिद्धांत को परिभाषित करने के लिए जाना जाता है। यह मामला उस समय उठा जब केरल राज्य सरकार ने केशवानंद भारती के मठ की संपत्ति को जब्त करने की कोशिश की।
फैसला
इस फैसले में 13 न्यायाधीशों की एक संवैधानिक पीठ ने यह तय किया कि भारतीय संविधान का मूल ढांचा संसद द्वारा संशोधित नहीं किया जा सकता है। यह सिद्धांत भारतीय लोकतंत्र की आधारशिला है, जिसने संविधान की स्थिरता और न्यायपालिका की स्वतंत्रता को सुनिश्चित किया है।
2. मनुस्मृति बनाम संघ (1980)
पृष्ठभूमि
यह मामला आरक्षण नीति को लेकर था, जिसमें जाति आधारित आरक्षण को चुनौती दी गई थी।
फैसला
सुप्रीम कोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि आरक्षण की नीति संविधान के अनुच्छेद 15 और 16 के तहत जायज़ है, और यह सामाजिक एवं शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्गों को समानता का अवसर देने के लिए आवश्यक है। कोर्ट ने यह भी कहा कि आरक्षण 50% से अधिक नहीं हो सकता है।
3. शाह बानो मामला (1985)
पृष्ठभूमि
शाह बानो मामला मुस्लिम पर्सनल लॉ और महिलाओं के अधिकारों के मुद्दे से संबंधित था। शाह बानो, एक मुस्लिम महिला, ने तलाक के बाद अपने पति से भरण-पोषण की मांग की थी।
फैसला
सुप्रीम कोर्ट ने मुस्लिम महिलाओं के लिए तलाक के बाद भी भरण-पोषण के अधिकार को मान्यता दी। इस फैसले ने भारतीय समाज में महिलाओं के अधिकारों के प्रति जागरूकता बढ़ाई और संसद द्वारा मुस्लिम महिलाओं (तलाक पर अधिकार संरक्षण) अधिनियम, 1986 को पारित करने के लिए प्रेरित किया।
4. विशाखा बनाम राजस्थान राज्य (1997)
पृष्ठभूमि
यह मामला कार्यस्थल पर महिलाओं के साथ यौन उत्पीड़न को रोकने के लिए महत्वपूर्ण था। इस मामले में एक सामाजिक कार्यकर्ता के साथ बलात्कार की घटना ने पूरे देश को हिला दिया था।
फैसला
सुप्रीम कोर्ट ने विशाखा दिशा-निर्देशों को लागू किया, जिसमें कार्यस्थल पर महिलाओं की सुरक्षा के लिए नियम बनाए गए। ये दिशा-निर्देश आज भी कानून के रूप में लागू हैं और महिलाओं के अधिकारों के लिए एक महत्वपूर्ण कदम साबित हुए हैं।
5. नवतेज सिंह जौहर बनाम भारत संघ (2018)
पृष्ठभूमि
यह मामला भारतीय दंड संहिता की धारा 377 को चुनौती देने के लिए दायर किया गया था, जो समलैंगिकता को एक आपराधिक कृत्य मानता था।
फैसला
सुप्रीम कोर्ट ने यह फैसला दिया कि धारा 377 का वह भाग, जो सहमति से वयस्कों के बीच समलैंगिक संबंधों को आपराधिक बनाता था, असंवैधानिक है। यह फैसला भारत में LGBTQ+ समुदाय के अधिकारों को मान्यता देने और समानता की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम था।
6. सबरीमाला मंदिर मामला (2018)
पृष्ठभूमि
यह मामला केरल के प्रसिद्ध सबरीमाला मंदिर में महिलाओं के प्रवेश को लेकर था। मंदिर में 10 से 50 साल की आयु की महिलाओं के प्रवेश पर प्रतिबंध था।
फैसला
सुप्रीम कोर्ट ने इस प्रतिबंध को असंवैधानिक घोषित किया और कहा कि यह महिलाओं के समानता और धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार का उल्लंघन है। इस फैसले ने धार्मिक परंपराओं और महिलाओं के अधिकारों के बीच संतुलन स्थापित करने की दिशा में एक नई दिशा दी।
7. आधार मामला (2018)
पृष्ठभूमि
आधार कार्ड को लेकर निजता के अधिकार पर बहस छिड़ गई थी। यह मामला इस बात पर केंद्रित था कि आधार कार्ड की अनिवार्यता भारतीय नागरिकों के निजता के अधिकार का उल्लंघन है या नहीं।
फैसला
सुप्रीम कोर्ट ने यह फैसला दिया कि आधार कार्ड का उपयोग सरकारी योजनाओं में लाभ प्राप्त करने के लिए आवश्यक है, लेकिन इसे निजी कंपनियों के साथ साझा नहीं किया जा सकता। इस फैसले ने निजता के अधिकार को मौलिक अधिकार का दर्जा दिया।
8. राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद (2019)
पृष्ठभूमि
यह विवाद भारत के सबसे पुराने और विवादित मामलों में से एक था, जिसमें अयोध्या में राम जन्मभूमि और बाबरी मस्जिद को लेकर मुद्दा था।
फैसला
सुप्रीम कोर्ट ने विवादित भूमि को राम जन्मभूमि न्यास को सौंपने का आदेश दिया और सरकार को एक वैकल्पिक स्थान पर मस्जिद निर्माण के लिए जमीन देने का निर्देश दिया। यह फैसला न्यायिक संतुलन और धार्मिक सहिष्णुता के प्रतीक के रूप में देखा गया।
निष्कर्ष
सुप्रीम कोर्ट के ये ऐतिहासिक फैसले भारतीय लोकतंत्र की विविधता और संविधान के प्रति निष्ठा को दर्शाते हैं। ये फैसले न केवल समाज को नई दिशा देते हैं, बल्कि नागरिकों के अधिकारों की सुरक्षा और संविधान की पवित्रता को बनाए रखने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।